माता का चौथा का रूप कुष्मांडा कैसे करे पूजा

कुष्मांडा ( माँ का ख़ुशी भरा रूप )

‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘इश’ का अर्थ है ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला – सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला| यह बड़े से छोटा होता है और छोटे से बड़ा ; यह बीज से बढ़ कर फल बनता है और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है| इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है; जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं| उनके पास आठ हाथ है ,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।

कुष्मांडा

मान्यता है कि मां अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती हैं और सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं. सूर्य के समान दैदिप्त्यमान इनकी कांति व प्रभा है. आठ भुजाएं होने के कारण ये अष्टभुजा देवी के नाम से विख्यात हैं. मान्यता के अनुसार, उन्हें कद्दू की बलि प्रिय है, इसलिए भी ये कूष्मांडा देवी के नाम से विख्यात हैं.

अपनी मंद हंसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है. जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था. चारों ओर अंधकार ही अंधकार परिव्याप्त था. तब इन्हीं देवी ने अपने हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी. अत: यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति हैं. इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व था ही नहीं.

मां कूष्मांडा के मंत्र

नवरात्र पर्व की एक अहम विशेषता इसमें इस्तेमाल होने वाले मंत्र हैं. नवरात्र के दिनों में दैवी को विशेष मंत्रों से प्रसन्न कर कई सिद्धियां हासिल की जा सकती हैं. इन्हीं दिनों तंत्र-मंत्र करने वाले अपनी तथाकथित शक्ति को बढ़ाने के लिए मां दुर्गा का आहवान करते हैं. लेकिन आम जन भी इन दिनों मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए तप और जप का सहारा लेते हैं. आम लोगों की पूजा अर्चना का एक अहम हिस्सा ध्यान मंत्र, स्त्रोत मंत्र और उपासन मंत्र होता है.