चौधरी ब्रह्म प्रकाश : दिल्ली के पहले CM

केन्या जन्मभूमि, दिल्ली कर्मभूमि

 

उनकी बोली, देहाती पहनावा और व्यवहार कुछ ऐसा था कि लोग खिंचे चले आते थे। ठेठ बोली में मिठास ऐसी की दिल्ली देहात के वो अगुआ बन गए थे। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश की। जिन्होंने सत्याग्रह आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के लाडले रहे। सबसे खास बात दिल्ली के कोने-कोने में उनके प्रशंसक रहे।

नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे दिल्ली का विकास

अपने कार्यकाल में चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने जहां दिल्ली में विकास कार्यों की नींव रखी वहीं उनकी दूरदर्शिता सहकारिता कमेटियों के निर्माण के रूप में सामने आई। केन्या से उनके लगाव का नतीजा था कि वो दिल्ली शहर का विकास नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे। राजनीतिक गलियारों में उनकी धमक थी। उनके कार्यों का ही नतीजा था कि सन् 2001 में भारत सरकार ने इन पर डाक टिकट निकाला।

मुगल-ए-आजम भी कहते थे ब्रह्मप्रकाश को

1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा की बात होते ही लोग 1993 में गठित विधानसभा को पहली विधानसभा मानते हैं। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन के अनुसार दिल्ली को 70 सदस्यों की एक विधानसभा दे दी गई जिसमें 12 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं। ब्रह्म प्रकाश को शेर-ए-दिल्ली, मुगले आजम जैसे उपनाम भी मिले।

केन्या जन्मभूमि, दिल्ली कर्मभूमि

बकौल आरवी स्मिथ, चौधरी ब्रह्म प्रकाश का जन्म केन्या में हुआ था। 16 साल की उम्र में मां-बाप संग दिल्ली आए थे। उनकी जिंदगी में केन्या के परिवेश का काफी प्रभाव रहा। वहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। उनके संस्कार ही उन्हें जाति, धर्म के बंधनों से ऊपर रखते थे। यहां दिल्ली में काफी समय तक उनके नाम का गलत उच्चारण होता था। खासकर, अंग्रेजी में स्पेलिंग संबंधी गलतियां होती थीं। उच्चारण भी प्रकाश की जगह परकाश करते थे।

दिल्ली देहात के अगुआ

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलनों में दिल्ली देहात ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इस कड़ी में आबादी पर नजर
डालें तो पता चलता है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों में 1901 में 48.6 फीसद, 1911 में 43.7 फीसद, 1921 में 37.7 फीसद और 1941 में 29.7 फीसद लोग गांव के निवासी थे।

जू की जगह होता लायंस पार्क

ब्रह्म प्रकाश जिम कॉर्बेट से बहुत प्रभावित थे। जिम कॉर्बेट के पूर्वज आयरलैंड के हरित चारागाह छोड़ हिंदुस्तान आकर बस गए थे। बाद में जिम कॉर्बेट केन्या जाकर बस गए। उनकी मृत्यु भी वहीं हुई। बचपन में ही एक बार ब्रह्म प्रकाश, कॉर्बेट की कब्र पर भी गए थे। वो उनके कार्यों से काफी प्रभावित थे। इसी तरह धौलपुर के एक ब्रिटिश परिवार ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया था। इनका नाम था जार्ज एडमसन। ये भी बाद में केन्या जाकर बस गए थे। इन्होंने वहां लायंस (शेर) पार्क बनवाया था। इन्हें लायंस प्रोटेक्टर के रूप में भी जाना जाता है। ब्रह्म प्रकाश दिल्ली चिड़ियाघर को लायंस पार्क की तर्ज पर विकसित करना चाहते थे।

जब अंग्रेजों का किया बखान

आरवी स्मिथ के मुताबिक, आजादी के बाद के दिनों में ब्रह्म प्रकाश एक सभा में शामिल हुए थे। लोग, अंग्रेजों
की बहुत बुराई कर रहे थे। इस पर ब्रह्म प्रकाश ने कहा कि, यह सच है कि अंग्रेजों की दास्ता से मुक्ति जरूरी
थी। हमें गुलामी में नहीं रहना है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अंग्रेजों ने भारत में रेल समेत कई विकास की सुविधाएं दीं। प्रत्येक जिले में सिर्फ तीन पोस्ट पर अंग्रेज नियुक्त होते थे। पहला डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, दूसरा सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस और तीसरा कोतवाल। जबकि इनके मातहत सारे भारतीय होते थे। लेकिन तीन अधिकारी पूरा जिला संभालते थे। उनके इस वक्तव्य की सभा में मौजूद कई लोगों ने विरोध जताया था।

सहकारिता विकास के सूत्रधार

प्रारंभिक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सहकारी क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। 40 वर्षों तक सहकारिता का उन्होंने मार्गदर्शन किया। वर्तमान में सहकारी दर्शन और ढांचे का विभिन्न स्तरों पर जो विकास हुआ, उसका श्रेय काफी हद तक ब्रह्म प्रकाश को जाता है। सही मायने में वे सहकारिता के अंतरराष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता होल सेल स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी इंस्टीट्यूट (वर्तमान दिल्ली राज्य सहकारी संघ) का गठन किया। दिल्ली में सहकारिता के विकास के वह मुख्य सूत्रधार और प्रेरणा के जरिया थे।