पनामा पेपर्स : अबकी बार खुला 12 हजार भारतीयों का कच्चा चिट्ठा

panama paper
काले धन का गढ़

 

2016 में पनामा पेपर्स जारी करके दुनियाभर में तहलका मचाने वाले जर्मन अखबार ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग ने गुरुवार को एक बार फिर खुफिया दस्तावेजों का खुलासा किया है। एक बार फिर पनामा स्थित दुनिया की सबसे बड़ी कानूनी सलाहकार कंपनी मोसेक फोंसेका के 12 लाख से अधिक दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया है। इस बार इसमें 12 हजार भारतीयों के नाम उजागर हुए हैं। पिछली बार 1.15 करोड़ दस्तावेजों का खुलासा हुआ था जिसमें 500 भारतीय नाम सामने आए थे। टैक्स हेवेन कहे जाने वाले पनामा देश में लोग अपना टैक्स बचाने के लिए निवेश करते हैं। यह एक तरह से काले धन का गढ़ है।

पनामा पेपर्स
यह ऑफशोर फाइनेंस के बारे में खुफिया जानकारी देने वाले दस्तावेजों का पुलिंदा है। ये पेपर्स खुलासा करते हैं कि कैसे दुनियाभर के राजनेताओं, सेलेब्रिटी और अमीर लोगों ने अपने धन को टैक्स से बचाने के लिए पनामा की लॉ फर्म मोसेक फोंसेका की सेवाएं लीं। इस बार के दस्तावेज मार्च, 2016 से दिसंबर, 2017 के बीच के हैं।

पुराने दस्तावेज हुए पुख्ता
नए दस्तावेजों में उन नामों की पुष्टि की गई है जिन्हें 2016 में सार्वजनिक किया गया था। उस समय उन लोगों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था। इसमें कई नामी भारतीय शामिल हैं। इसके साथ नए नामों को भी सार्वजनिक किया गया है। खुलासा होने के साथ ही भारत सरकार ने मल्टी एजेंसी ग्रुप द्वारा जांच बिठाने की घोषणा की है।

क्या हैं टैक्स हेवन
टैक्स हेवन या ऑफशोर फाइनेंस सेंटर ऐसे स्थान होते हैं जहां कोई भी निवेश करके अपना टैक्स बचा सकता है। यह टैक्स हेवन अधिकतर गुप्त और स्थायी होते हैं। ज्यादातर यह छोटे द्वीप होते हैं। पनामा, स्विट्जरलैंड, आयरलैंड और नीदरलैंड टैक्स कम करने के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि ब्रिटेन और अमेरिका ऑफशोर फाइनेंस सेंटरों की सुविधा प्रदान करने वाले शीर्ष देश हैं।

कार्रवाई अब तक
पिछला खुलासा होने के बाद से अब तक देश के केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने 426 भारतीयों पर जांच बिठाई है। जून, 2018 तक 1,088 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है। नवंबर, 2017 तक 58 मामलों में जांच-पड़ताल की गई। 16 के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा भी दायर किया गया। 13 जून, 2018 तक पनामा में संपत्तियों के मालिक दिल्ली के तीन लोगों के घर व दफ्तर में तलाशी ली गई।

ऐसे शुरू हुआ खुलासों का सिलसिला
जर्मनी के अखबार ज्यूड डॉयचे त्साइटुंग के हाथ यह पेपर्स लगे। अखबार ने इन खुफिया दस्तावेजों को अमेरिका स्थित इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स संस्था के साथ साझा किया। इस संस्था ने 67 देशों से तकरीबन 100 मीडिया समूहों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ा। 380 पत्रकारों ने मिलकर इन दस्तावेजों का महीनों तक अध्ययन किया। इसके बाद इन्हें जारी किया गया। पहली बार इन्हें अप्रैल, 2016 में जारी किया गया।

सामने आए नए भारतीय नाम
पीवीआर सिनेमा के मालिक अजय बिजली और उनका परिवार।
हाइक मेसेंजर के सीईओ कविन भारती मित्तल: भारती एयरटेल के चेयरमैन सुनील मित्तल के बेटे।
जलज अश्विन दानी : एशियन पेंट्स के प्रमोटर अश्विन दानी के बेटे

पूर्व के नामों की हुई पुष्टि

– शिव विक्रम खेमका सन ग्रुप के संस्थापक नंद लाल खेमका के बेटे
– अमिताभ बच्चन हिंदी फिल्म अभिनेता
– जहांगीर सोराबजी पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के बेटे
– केपी सिंह व उनका पूरा परिवार डीएलएफ समूह के सीईओ व चेयरमैन
– अनुराग केजरीवाल दिल्ली लोकसत्ता पार्टी के पूर्व नेता
– नवीन मेहरा मेहरासंस ज्वेलर्स परिवार के सदस्य
– हजरा इकबाल मेमन अंडरवर्ल्ड डॉन इकबाल मिर्ची की बीवी।

क्या है मैग
केंद्र सरकार ने इस मामले की जांच के लिए अप्रैल-2016 में मल्टी एजेंसी ग्रुप (मैग) का गठन किया था। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन को संयोजक के रूप में इसका प्रमुख नियुक्त किया गया था। मैग में आयकर विभाग के प्रतिनिधियों के साथ-साथ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), वित्तीय खुफिया इकाई (एफआइयू) और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

पुराने मामलों में पकड़ा 1140 करोड़ रुपये अघोषित निवेश
पनामा पेपर लीक कांड में नए नाम सामने आने के बाद आयकर विभाग ने भले ही त्वरित कार्रवाई का भरोसा दिया हो, लेकिन पूर्व में सामने आए मामलों की जांच के संबंध में विभाग का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। पनामा पेपर मामले में पहले जिन 426 व्यक्तियों के नाम उजागर हुए थे, विभाग को उसमें से मात्र 74 मामले ही कार्रवाई योग्य मिले। इसमें 1140 करोड़ रुपये के अघोषित विदेशी निवेश के राज खुले। अब सामने आए नए नामों को लेकर सरकार का कहना है कि मल्टी एजेंसी ग्रुप (मैग) ने इन मामलों की जांच शुरू कर दी है और निर्धारित समय सीमा में इसे पूरा कर लिया जाएगा। पनामा पेपर लीक मामला सबसे पहले चार अप्रैल 2016 को उजागर हुआ था।