स्वास्थ्योपयोगी मेथी

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□□□□○स्वास्थ्योपयोगी मेथी-□□□□□
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?आहार में हरी सब्जियों का विशेष महत्व है।आधुनिक विज्ञान के मतानुसार हरे पत्तों वाली सब्जियों में क्लोरोफिल नामक तत्व रहता है। जो कीटाणुओं का नाशक है।

?दांत एवं मसूड़ों में सडन उत्पन्न करने वाले जन्तुओं को यह क्लोरोफिल नामक तत्व नष्ट करता है।इसके अलावा इसमें प्रोटीन तत्व भी पाया जाता है।

?हरी सब्जियों में लौह तत्व भी काफी मात्रा में पाया जाता है।जो पांडुरोग तथा शारीरिक कमजोरी को नष्ट करता है।

? हरी सब्जियों में स्थित क्षार तत्व रक्त की अम्लता को घटाकर उसका नियमन करता है।

?हरी सब्जियों में मेथी भाजी का प्रयोग भारत के प्रायः सभी भागों में बहुलता से होता है।

?इसे सुखाकर भी उपयोग में लिया जाता है।इसके अलावा मेथी दानों का प्रयोग बघार के रूप में तथा कई औषधियों के रूप में किया जाता है।

?वैसे तो मेथी हर समय उगायी जा सकती है।फिर भी मार्गशीर्ष से फाल्गुन महीने तक ज्यादा उगायी जाती है।कोमल पत्ते वाली मेथी कम कड़वी होती है।

?मेथी की भाजी तीखी,कड़वी,रूक्ष, गरम,पित्तवर्धक,अग्निदीपक,भूखवर्धक,पचने में हल्की,मलावरोधक,को दूर करने वाली,हृदय के लिए हितकर एवं बलप्रद होती है।

?सूखी मेथी के बीजों की अपेक्षा मेथी की भाजी कुछ ठंडी पाचनकर्त्री,वायु की गति को ठीक रखने वाली तथा प्रसूता स्त्रियों,वायुदोष के रोगियों एवं कफ के रोगियों के लिए अत्यंत हितकारी है।

?यह बुखार,अरूचि,उल्टी,खांसी, वातरोग,वातरक्त,वायु,कफ,बवासीर,कृमि तथा क्षय का नाश करने वाली है।
मेथी पौष्टिक एवं रक्त को शुद्ध करने वाला है।

यहशूल,वायुगोला,संन्धिवात,कमर के दर्द,मधुमेह(प्रमेह) एवं निम्न रक्तचाप को मिटाने वाली है।

?मेथी माता का दूध बढाती है।आमदोष को मिटाती है।एवं शरीर को स्वस्थ बनाती है।

○ मेथी के औषधिय प्रयोग- ○
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[०१] कब्जियत- कफदोष से उत्पन्न कब्जियत में मेथी की रेशेवाली सब्जी रोज खाने से लाभ होता है।

[०२] बवासीर- प्रतिदिन मेथी की रेशेवाली सब्जी का सेवन करने से वायु कफ एवं बवासीर में लाभ होता है।

[०३] बहुमूत्रता- जिसे एकात घंटे में बार-बार मूत्र त्याग के लिए जाना पड़ता हो। अर्थात बहुमूत्रता का रोग हो।उसे मेथी की भाजी के १०० मिली लीटर रस में डेढ़ ग्राम कत्था तथा ०३ ग्राम मिस्री मिलाकर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।इससे लाभ होता है।

[०४] प्रमेह(मधुमेह)-प्रतिदिन सुबह मेथी की भाजी का १०० मिलीलीटर रस पी लें।शक्कर की मात्रा ज्यादा हो तो सुबह शाम दो बार रस पींये।साथ ही भोजन में रोटी चावल एवं चिकनी घी तेलयुक्त तथा मीठी चीजों को छोड़ दे। शीघ्र लाभ होता है।

[०५] निम्न रक्तचाप- जिन्हे निम्न रक्त चाप की शिकायत हो।उन्हें मेथी की भाजी में अदरक गरम मसाला इत्यादि डालकर सेवन करना लाभप्रद है।

[०६] कृमि- बच्चों के पेट में कृमि होने पर उन्हें भाजी का ०१-०२ चम्मच रस रोज पिलाने से लाभ होता है।

[०७] वायु का दर्द- रोज हरी अथवा सूखी मेथी का सेवन करने से शरीर के ८० प्रकार के वायु रोगों में लाभ होता है।

[०८] आंव होने पर-मेथी की भाजी के ५० मिलीलीटर रस में ०६ ग्राम मिस्री डालकर पीने से लाभ होता है।०५ ग्राम दही के साथ सेवन करने से भी लाभ होता है। दही खटटा नहीं खाना चाहिए।

[०९] वायु के कारण होने वाले हाथ पैर के दर्द में- मेथी के बीजों को घी में सेंककर उसका चूर्ण बनाये एवं उसके लड्डू बनाकर प्रतिदिन एक लड्डू का सेवन करने से लाभ होता है।

[१०] गर्मी में लू लगने पर- मेथी की सूखी भाजी को ठंडे पानी में भिगोयें।अच्छी तरह भीग जाने पर मसलकर छान लें।एवं उस पानी में शहद मिलाकर एक बार पिलायें। लू में लाभ होता है।

मेथी पाक

□ शीत ऋतु में विभिन्न रोगों से बचने के लिये एवं शरीर की पुष्टि के लिए मेथी पाक का प्रयोग किया जाता है।

○ बनाने की विधि- मेथी एवं सोंठ ३२५-३२५ ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का कपडछान चूर्ण कर लें। सवा पांच लीटर दूध में ३२५ ग्राम घी डालें। उसमें यह चूर्ण मिला दें।यह सब एकरस होकर जब तक गाढ़ा न हो जाये।तब तक उसे पकायें।उसके पश्चात उसमें ढाई किलो शक्कर डालकर फिर से धीमी आंच पर पकायें।
अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें।फिर उसमें लैंडी पीपर सोंठ पीपरामूल चित्रक अजवायन जीरा धनिया कलौंजी सौंफ जायफल दालचीनी तेजपत्र एवं नागरमोथा ये सभी ४०-४० ग्राम एवं काली मिर्च का ६० ग्राम चूर्ण डालकर मिला दें।शक्ति के अनुसार सुबह खायें।

○ रोगों में प्रयोग-आमवात,वातरोग,विषम ज्वर, पांडुरोग,पीलिया,उन्माद,अपस्मारमिरगी,प्रमेह,वातरक्त,अम्लपित्त,शिरोरोगनासिकारोग,नेत्ररोग,प्रदररोग,आदि सभी में लाभदायक होता है।

○यह शरीर के लिए पुष्टिकारक,बलकारक,एवं वीर्यवर्धक भी है।
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